Friday, 10 October 2008

सत्यानुसरण 20

हृदय दो, कभी भी हटना नहीं पड़ेगा।
निर्भर करो, कभी भी भय नहीं पाओगे।
विश्वास करो, अन्तर के अधिकारी बनोगे।
साहस दो, किंतु शंका जगा देने की चेष्टा करो।
धैर्य धरो, विपद कट जायेगी।
अहंकार न करो, जगत में हीन होकर रहना न पड़ेगा।
किसी के द्वारा दोषी बनाने के पहले ही कातर भाव से अपना दोष स्वीकार करो, मुक्त कलंक होगे, जगत् के स्नेह के पात्र बनोगे।
संयत होओ, किंतु निर्भीक बनो।
सरल बनो, किंतु बेवकूफ न होओ।
विनीत होओ, उसका अर्थ यह नहीं कि दुर्बल-हृदय बनो।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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