Saturday, 15 November 2008

सत्यानुसरण 49

नाम-यश आत्मोन्नयन का घोर अन्तराय (बाधक) है।
तुम्हारी थोड़ी उन्नति होने से ही देखोगे किसी ने तुम्हें ठाकुर बना दिया है, कोई महापुरुष कहता है, कोई अवतार, कोई सद् गुरु इत्यादि कहता है; और फिर कोई शैतान, बदमाश, कोई व्यवसायी इत्यादि भी कहता है; सावधान! तुम इनमें से किसी की ओर नजर मत देना। तुम्हारे लिए ये सभी भूत हैं, नजर देने से ही गर्दन पर चढ़ बैठेंगे, उसे छुड़ाना भी महामुश्किल है। तुम अपने अनुसार काम किए जाओ, चाहे जो हो।
नाम-यश इत्यादि की आशा में अगर तुम्हारा मन भक्त का आचरण करता है, तब तो मन में कपटता छिपी हुई है--तत्क्षण उसे मारकर बाहर निकाल दो। तभी मंगल है, नहीं तो सब नष्ट हो जायेगा।
ठाकुर, अवतार किंवा भगवान् इत्यादि होने की साध मन में होते ही तुम निश्चय ही भण्ड बन जाओगे और मुंह से हजार कहने पर भी कार्य के रूप में कुछ भी नहीं कर सकोगे, यदि वैसी इच्छा रहे तो अभी त्यागो, नहीं तो अमंगल निश्चित है।
तुम जिस तरह प्रकृत होगे, प्रकृति तुम्हें उस तरह की उपाधि निश्चय देगी एवं तुम्हारे अन्दर वैसा अधिकार भी देंगी; इसे नित्य प्रत्यक्ष कर रहे हो; तो तुम्हें और क्या चाहिये ? प्राणपण से प्रकृत होने की चेष्टा करो। पढ़कर पास किए बिना क्या यूनिवर्सिटी किसी को उपाधि देती है?
भूलकर भी अपना प्रचार करने मत जाना या अपना प्रचार करने के लिए किसी से अनुरोध न करना-ऐसा करने से सभी तुमसे घृणा करेंगे और तुमसे दूर हट जायेंगे।
तुम यदि किसी सत्य को जानते हो और उसे यदि मंगलप्रद समझते हो, प्राणपण से उसके ही विषय में बोलो एवं सभी से जानने के लिये अनुरोध करो; समझने पर सभी तुम्हारी बात सुनेंगे एवं तुम्हारा अनुसरण करेंगे।
यदि तुमने सत्य देखा है, समझा है, तो तुम्हारे कायमनोवाक्य से वह प्रस्फुटित होगा ही। तुम जब तक उसमें खो नहीं जाते तब तक किसी भी तरह स्थिर नहीं रह सकोगे; सूर्य को क्या अन्धकार ढककर रख सकता है?
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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