Thursday, 25 September 2008

सत्यानुसरण 10

सत्यदर्शी का आश्रय लेकर स्वाधीन भाव से सोचो एवं विनय सहित स्वाधीन मत प्रकाश करो। पुस्तक पढ़कर पुस्तक मत बन जाओ, उसके essence (सार) को मज्जागत करने की चेष्टा करो। Pull the husk to draw the seed (बीज प्राप्त करने के लिए भूसी को अलग करो )।
ऊपर-ऊपर देखकर ही किसी चीज को न छोड़ो या किसी प्रकार का मत प्रकाश न करो। किसी चीज का शेष देखे बिना उसके सम्बन्ध में ज्ञान ही नहीं होता है और बिना जाने तुम उसके विषय में क्या मत प्रकाश करोगे ?
जो कुछ क्यों न करो, उसके अन्दर सत्य देखने की चेष्टा करो। सत्य देखने का अर्थ ही है उसके आदि-अंत को जानना और वही है ज्ञान।
जो तुम नहीं जानते हो, ऐसे विषय में लोगों को उपदेश देने मत जाओ।

No comments: