तुम दूसरे से जैसा पाने की इच्छा रखते हो, दूसरे को वैसे ही देने की चेष्टा करो--ऐसा समझ कर चलना ही यथेष्ट है--स्वयं ही सभी तुम्हें पसंद करेंगे, प्यार करेंगे।
स्वयं ठीक रहकर सभी को सत् भाव से खुश करने की चेष्टा करो, देखोगे, सभी तुम्हें खुश करने की चेष्टा कर रहे हैं। सावधान, निजत्व खोकर किसी को खुश करने नहीं जाओ अन्यथा तुम्हारी दुर्गति की सीमा नहीं रहेगी।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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