अपना दोष जानकर भी यदि तुम उसे त्याग नहीं सकते तो किसी भी तरह उसका समर्थन कर दूसरे का सर्वनाश न करो।
तुम यदि सत् बनो, तुम्हारे देखा-देखी हजार-हजार लोग सत् हो जायेंगे। और यदि असत् बनो, तुम्हारी दुर्दशा में संवेदना प्रकाश करने वाला कोई भी नहीं रहेगा; कारण, असत् होकर तुमने अपने चतुर्दिक को असत् बना डाला है।
तुम ठीक-ठीक समझ लो कि तुम अपने, अपने परिवार के, दश एवं देश के वर्त्तमान और भविष्य के लिये उत्तरदायी हो।
नाम-यश की आशा में कोई काम करने जाना ठीक नहीं। किंतु कोई भी काम निःस्वार्थ भाव से करने पर ही कार्य के अनुरूप नाम-यश तुम्हारी सेवा करेंगे ही।
अपने लिये जो भी किया जाय वही है निष्काम। किसी के लिये कुछ नहीं चाहने को ही निष्काम कहते हैं-केवल ऐसी बात नहीं है।
दे दो, अपने लिये कुछ मत चाहो, देखोगे, सभी तुम्हारे अपने होते जा रहे हैं।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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