Wednesday, 24 September 2008

सत्यानुसरण 8

यदि मंगल चाहते हो तो ज्ञानाभिमान छोड़ो, सभी की बातें सुनो और वही करो जो तुम्हारे हृदय के विस्तार में सहायता करे !
ज्ञानाभिमान ज्ञान का जितना अन्तराय यानि बाधक है उतना रिपु नहीं।
यदि शिक्षा देना चाहते हो तो कभी भी शिक्षक बनना मत चाहो। मैं शिक्षक हूँ, यह अंहकार ही किसी को सीखने नहीं देता।
अहं को जितना दूर रखोगे तुम्हारे ज्ञान या दर्शन की दूरी उतनी ही विस्तृत होगी।
अहं जब गल जाता हैं, जीव तभी सर्वगुणसंपन्न निर्गुण हो जाता है।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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