Thursday, 6 November 2008

सत्यानुसरण 40

थोड़ा रो लेने से ही या नृत्य-गीतादि में उत्तेजित होकर उछल-कूद करने से ही जो भक्ति हुई, ऐसी बात नहीं है; सामयिक भावोन्मत्ततादि भक्त के लक्षण नहीं। भक्त के चरित्र में पतला अहंकार का चिह्न, विश्वास का चिह्न, सत्-चिंता का चिह्न, सद्व्यवहार का चिह्न एवं उदारता इत्यादि के चिह्न कुछ-न-कुछ रहेंगे ही, नहीं तो भक्ति नहीं आयी।
विश्वास नहीं आने पर निष्ठा नहीं आती और निष्ठा के बिना भक्ति रह नहीं सकती।
दुर्बल भावोन्मत्तता अनेक समय भक्ति जैसी दिखायी पड़ती है, वहाँ निष्ठा नहीं है और भक्ति का चरित्रगत लक्षण भी नहीं है।
जिसके हृदय में भक्ति है वह समझ नहीं पाता कि वह भक्त है और दुर्बल, निष्ठाहीन केवल भाव-प्रवण, मोटा अहंयुक्त हृदय सोचता है--मैं खूब भक्त हूँ।
अश्रु, पुलक, स्वेद, कम्पन होने से ही जो वहाँ भक्ति आयी है, ऐसी बात नहीं, भक्ति के इन सब के साथ अपना स्वधर्म चरित्रगत लक्षण रहेगा ही।
अश्रु, पुलक, स्वेद, कम्पन इत्यादि भाव के लक्षण हैं; वे अनेक प्रकार के हो सकते हैं।
भक्ति के चरित्रगत लक्षणों के साथ यदि उस भाव के वे लक्षण प्रकाश पायें तभी वे सात्विक भाव के लक्षण हैं।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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