जैसे आदर्श में तुम विश्वास स्थापन करोगे, तुम्हारा स्वभाव भी उसी तरह गठित होगा और तुम्हारा दर्शन भी तद्रूप होगा।
विश्वासी को अनुसरण करो, प्रेम करो, तुम में भी विश्वास आयेगा।
मुझे विश्वास नहीं है--इस भाव के अनुसरण से मनुष्य विश्वासहीन हो जाता है।
विश्वास नहीं हो, ऐसा मनुष्य नहीं। जिसका विश्वास जितना गहरा है, जितना उच्च है, उसका मन उतना उच्च है, जीवन उतना ही गहरा है।
जो सत् में विश्वासी है वह सत् होगा ही और असत् में विश्वासी असत् हो जाता है।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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