Monday, 10 November 2008

सत्यानुसरण 43

अहंकार जितना घना होता है, अज्ञानता उतनी अधिक होती है; और अहं जितना पतला होता है, ज्ञान उतना उज्ज्वल होता है।
संदेह अविश्वास का दूत है और अविश्वास ही है अज्ञानता का आश्रय।
संदेह आने पर तत्क्षण उसके निराकरण की चेष्टा करो, और सत्-चिंता में निमग्न होओ --ज्ञान के अधिकारी होगे, और आनंद पाओगे।
असत् -चिंता से कुज्ञान या अज्ञान अथवा मोह जन्म लेता है, उसका परिहार करो, दुःख से बचोगे।
तुम असत् में जितना ही आसक्त होगे उतना ही स्वार्थबुद्धिसम्पन्न होगे, और उतना ही कुज्ञान या मोह से आच्छन्न हो पड़ोगे; और रोग, शोक, दारिद्र्य, मृत्यु इत्यादि यंत्रनाएँ तुम पर उतना ही आधिपत्य करेंगी, यह निश्चित है।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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