Friday, 7 November 2008

सत्यानुसरण 41

नकली भक्ति मोटा-अहंकार-युक्त होती है, असली भक्ति होती है अहंकार-मुक्त अर्थात् खूब पतला अहंकार-युक्त।
नकली भक्ति-युक्त मनुष्य उपदेश नहीं ले सकता, उपदेष्टा के रूप में उपदेश केवल दे सकता है; इसीलिये कोई उसे यदि उपदेश देता है तो उसके चेहरे पर क्रोध के लक्षण, विरक्ति के लक्षण, संग छोड़ने की चेष्टा इत्यादि लक्षण प्रायः स्पष्ट प्रकाश पाते हैं।
असली भक्ति-युक्त मनुष्य उपदेष्टा का आसन लेने में बिल्कुल ही गैरराजी होता है। यदि उपदेश पाता है, उसके चेहरे पर आनंद के चिह्न झलकने लगते हैं।
अविश्वासी एवं बहुनैष्ठिक के हृदय में भक्ति आ ही नहीं सकती।
भक्ति एक के लिए बहुत से प्रेम करती है और आसक्ति बहुत के लिये एक से प्रेम करती है।
आसक्ति में स्वार्थ से आत्मतुष्टि होती है और भक्ति में परार्थ से आत्मतुष्टि होती है।
भक्ति की अनुरक्ति सत् में है और आसक्ति का नशा स्वार्थ में, अहं में है।
आसक्ति काम की पत्नी है और भक्ति प्रेम की छोटी बहन है।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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