Wednesday, 5 November 2008

सत्यानुसरण 39

विषय में मन संलग्न रहने को आसक्ति कहते हैं और सत् में संलग्न रहने को भक्ति कहते हैं।
प्रेम भक्ति की ही क्रमोन्नति है। भक्ति का गाढ़त्व ही प्रेम है। अहंकार जहाँ जितना पतला है भक्ति का स्थान भी वहाँ उतना ही अधिक है।
भक्ति बिना साधना में सफल होने का उपाय कहाँ है? भक्ति ही सिद्धि ला दे सकती है।
विश्वास जिस तरह अन्धा नहीं होता, भक्ति भी उसी तरह मूढ़ नहीं होती।
भक्ति में किसी भी समय किसी तरह की दुर्बलता नहीं।
क्लीवत्व, दुर्बलता बहुधा भक्ति का वेश पहन कर खड़े होते हैं, उनसे सावधान रहना।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

1 comment:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

श्री ठाकुर की वाणी में, भरा संस्कृति-ज्ञान.
धन्यवाद है आपका,भेजा मन्त्र महान.
भेजा मन्त्र महान,ब्लाग को धन्य बनाया.
हर पाठक के भावों को मीठा महकाया.
कह साधक कवि,ईश्वर बसते हर प्राणी में.
भरा संस्कृति-ज्ञान, श्री श्री ठाकुर वाणी में.