तुम लता का स्वभाव अवलम्बन करो, और, आदर्शरूपी वृक्ष को लिपट कर धरो-सिद्धकाम होगे।
यदि तुम्हें आदर्श की बात बोलने में आनंद, सुनने में आनंद; उनकी चिंता करने में आनंद, उनका हुक्म पाने पर आनंद, उनके आदर में आनंद, अनादर में भी आनंद हो, उनके नाम से हृदय उछल पड़े-मैं निश्चय कहता हूँ, अपने उन्नयन के लिए तुम और नहीं सोचो।
सद् गुरु के शरणापन्न होओ, सत् नाम मनन करो, और, सत्संग का आश्रय ग्रहण करो--मैं निश्चय कहता हूँ, तुम्हें अपने उन्नयन के लिये सोचना नहीं पड़ेगा !
तुम भक्तिरूपी जल को त्याग कर आसक्तिरूपी बालू की रेत में बहुत दूर मत जाओ, दुःखरूपी सूर्योताप से बालू की रेत गर्म हो जाने पर लौटना मुश्किल होगा; थोड़ा उत्तप्त होते-होते अगर लौट नहीं सके, तो सूखकर मरना होगा।
भावमुखी रहने की चेष्टा करो, पतित नहीं होगे वरन अग्रसर होते रहोगे।
गुरुमुखी होने की चेष्टा करो, मन का अनुसरण नहीं करो--उन्नति तुम्हें किसी भी तरह त्याग नहीं करेगी।
विवेक को अवलम्बन करो, और मन का अनुसरण नहीं करो--उदारता तुम्हें कभी भी त्याग नहीं करेगी।
सत्य का आश्रय लो, और असत्य का अनुगमन नहीं करो--शान्ति तुम्हें किसी भी तरह छोड़कर नहीं रहेगी।
दीनता को अन्तर में स्थान दो--अहंकार तुम्हारा कुछ भी नहीं कर सकेगा।
जिसे त्याग करना हो उसकी ओर आकृष्ट या आसक्त न होना--दुःख से बचोगे।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
1 comment:
राधा स्वामी-
श्री श्री ठाकुर की जय.
जय गुरु.
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