Thursday, 2 October 2008

सत्यानुसरण 15

जितने दिनों तक तुम्हारे शरीर और मन में व्यथा लगती है उतने दिनों तक तुम एक चींटी की भी व्यथा के निराकरण की ओर चेष्टा रखो और ऐसा यदि नहीं करते हो तो तुमसे हीन और कौन है ?
अपने गाल पर थप्पड़ लगने पर यदि कह सको, कौन किसको मारता है, तभी दूसरे के समय बोलो--अच्छा ही है। खबरदार, स्वयं यदि ऐसा नहीं सोच सको तो दूसरे के समय बोलने मत जाओ!
यदि अपने कष्ट के समय संसारी बनते हो तो दूसरे के समय ब्रह्मज्ञानी मत बनो। वरन अपने दुःख के समय ब्रह्मज्ञानी बनो और दूसरे के समय संसारी, ऐसा कृत्रिम-भाव भी अच्छा है।
यदि मनुष्य हो तो अपने दुःख में हँसो और दूसरे के दुःख में रोओ।
अपनी मृत्यु यदि नापसंद करते हो तो कभी भी किसी को 'मरो' न कहो।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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