क्षमा करो, किंतु हृदय से; भीतर गरम होकर अपारगतावशतः क्षमाशील होने मत जाओ।
विचार का भार, दण्ड का भार अपने हाथ में लेने मत जाओ; अन्तर सहित परम पिता पर न्यस्त करो, भला होगा।
किसी को भी अन्याय के लिये यदि तुम दण्ड देते हो, निश्चित जानो-परमपिता उस दण्ड को तुम दोनों के बीच तारतम्यानुसार बाँट देंगे।
पिता के लिये, सत्य के लिये दुःख भोग करो; अनन्त शान्ति पाओगे।
तुम सत्य में अवस्थान करो; अन्याय को सहन करने की चेष्टा करो, प्रतिरोध न करो, शीघ्र ही परममंगल के अधिकारी होओगे।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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