दीन होने का अर्थ गन्दा बने रहना नहीं है।
व्याकुलता का अर्थ विज्ञापन नहीं बल्कि हृदय की एकांत उद्दाम आकांक्षा है।
स्वार्थपरता स्वाधीनता नहीं, वरन स्वाधीनता का अंतराय (बाधक) है।
तुम जितने लोगों की सेवा करोगे उतने लोगों के यथासर्वस्व के अधीश्वर बनोगे।
तेज का अर्थ क्रोध नहीं, वरन विनय समन्वित दृढ़ता है।
साधु का अर्थ जादूगर नहीं, वरन त्यागी, प्रेमी है।
भक्त का अर्थ क्या अहमक (बेवकूफ) है? वरन विनीत अहंयुक्त ज्ञानी है।
सहिष्णुता का अर्थ पलायन नहीं, है प्रेम सहित आलिंगन।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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