Wednesday, 29 October 2008

सत्यानुसरण 34

जो भाव विरुद्ध भाव द्वारा आहत या अभिभूत नहीं होता, वही है विश्वास।
विश्वास नहीं रहने पर दर्शन कैसे होगा ?
कर्म विश्वास का अनुसरण करता है, जैसा विश्वास, कर्म भी वैसा ही होता है।
गंभीर विश्वास से सब हो सकता है। विश्वास करो,-- सावधान ! अहंकार, अधैर्य और विरक्ति जिसमें न आये-- जो चाहते हो वही होगा !
विश्वास ही विस्तार और चैतन्य ला दे सकता है और अविश्वास जड़त्व, अवसाद, संकीर्णता ले आता है।
विश्वास युक्ति-तर्क के परे है; यदि विश्वास करो, जितने युक्ति-तर्क हैं तुम्हारा समर्थन करेंगे ही।
तुम जिस तरह विश्वास करोगे, युक्ति-तर्क तुम्हारा उसी तरह समर्थन करेंगे।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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