स्पष्टवादी होओ, किंतु मिष्टभाषी बनो।
बोलने में विवेचना करो, किंतु बोलकर विमुख मत होओ।
यदि भूल बोल चुके हो, सावधान होओ, भूल नहीं करो।
सत्य बोलो, किंतु संहार न लाओ।
सत् बात बोलना अच्छा है, किंतु सोचना, अनुभव करना और भी अच्छा है।
असत् बात बोलने की अपेक्षा सत् बात बोलना अच्छा है निश्चय, किंतु बोलने के साथ कार्य करना एवं अनुभव न रहा तो क्या हुआ?-- बेहला, वीणा जिस तरह वादक के अनुग्रह से बजती अच्छी है, किंतु वे स्वयं कुछ अनुभव नहीं कर सकती।
जो अनुभूति की खूब गपें मारता है पर उसके लक्षण प्रकाशित नहीं होते, उसकी सभी गपें कल्पनामात्र या आडम्बर हैं।
जितना डुबोगे उतना ही बेमालूम होओगे।
जैसे अनार पकते ही फट जाता है, तुम्हारे अन्तर में सत् भाव परिपक्व होते ही स्वयं फट जायेगा--तुम्हें मुँह से उसे व्यक्त करना न होगा।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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