जिन्हें तुमने चालकरूप में मनोनीत कर लिया है, उनसे अपने हृदय की कोई भी बात गोपन न करो। गोपन करना उनपर अविश्वास करना है, और अविश्वास में ही है अधःपतन। चालक अन्तर्यामी हैं, यदि ठीक-ठीक विश्वास हो तो तुम कुकार्य कर ही नहीं सकोगे। और यदि कर भी लोगे तब निश्चय ही स्वीकार करोगे। और गोपन करने की इच्छा होते ही समझो, तुम्हारे हृदय में दुर्बलता आयी है एवं अविश्वास ने तुम पर आक्रमण किया है--सावधान होओ ! नहीं तो बहुत दूर चले जाओगे।
तुम यदि गोपन करते हो, तुम्हारे सत् चालक भी छिपे रहेंगे और तुम अपने हृदय का भाव व्यक्त करो, उन्मुक्त बनो, वे भी तुम्हारे सम्मुख उन्मुक्त होंगे, यह निश्चित है।
गोपन करने के अभिप्राय से चालक को 'अंतर्यामी हो, सब कुछ ही जान रहे हो', यह कह कर चालाकी करने से स्वयं पतित होंगे, दुर्दशायें धर दबायेंगी।
हृदय-विनिमय प्रेम का एक लक्षण है; और तुम यदि उसी हृदय को गोपन करते हो तो यह निश्चित है कि तुम स्वार्थभावापन्न हो, उनको केवल बातों से प्रेम करते हो।
काम में गोपनता है, किंतु प्रेम में तो दोनों के अन्दर कुछ भी गोपन नहीं रह सकता।
सत्-चालक क्षीण अहंयुक्त होते हैं; वे स्वयं अपनी क्षमता को तुम्हारे सम्मुख किसी भी तरह जाहिर न करेंगे, बल्कि इसीलिये तुम्हारे भावानुयायी तुम्हारा अनुसरण करेंगे-- यही है सत् चालक का स्वभाव। यदि सत्-चालक अवलंबन किए रहो, जो भी करो, भय नहीं, मरोगे नहीं, किंतु कष्ट के लिए राजी रहो।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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