क्षमा करो, किंतु क्षति मत करो।
प्रेम करो, किंतु आसक्त मत होओ।
खूब प्रेम करो, किंतु घुलमिल मत जाओ।
बक-बक करना पूर्णत्व का चिह्न नहीं।
यदि स्वयं संतुष्ट या निर्भावना हुए हो तो दूसरे के लिए चेष्टा करो।
जिस परिमाण में दुःख के कारण से मन संलग्न होकर अभिभूत होगा, उसी परिमाण में हृदय में भय आएगा एवं दुर्बलताग्रस्त हो जाओगे।
यदि रक्षा पाना चाहते, भय एवं दुर्बलता नाम की कोई चीज मत रखो; सत् चिंता एवं सत् कर्म में डूबे रहो।
असत् में आसक्ति से भय, शोक एवं दुःख आते हैं। असत् का परिहार करो, सत् में आस्थावान बनो, त्राण पाओगे।
सत्-चिंता में निमज्जित रहो, सत् कर्म तुम्हारा सहाय होगा एवं तुम्हारा चतुर्दिक सत् होकर सब समय तुम्हारी रक्षा करेगा ही।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण
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