Tuesday, 28 October 2008

सत्यानुसरण 33

धर्म को जानने का अर्थ है विषय के मूल कारण को जानना और वही जानना ज्ञान है।
उस मूल के प्रति अनुरक्ति ही है भक्ति; और भक्ति के तारतम्यानुसार ही ज्ञान का भी तारतम्य होता है। जितनी अनुरक्ति से जितना जाना जाता है, भक्ति और ज्ञान भी उतना ही होता है।
तुम विषय में जितना आसक्त होते हो, विषय सम्बन्ध में तुम्हारा ज्ञान भी उतना ही होता है।
जीवन का उद्देश्य है अभाव को एकदम भगा देना और वह केवल कारण को जानने से ही हो सकता है।
अभाव से परिश्रान्त मन ही धर्म या ब्रह्मजिज्ञासा करता है, अन्यथा नहीं करता।
किससे अभाव मिटेगा और किस प्रकार, ऐसी चिंता से ही अंत में ब्रह्मजिज्ञासा आती है।
जिस पर विषय का अस्तित्व है वही है धर्म; जब तक उसे नहीं जाना जाता तब तक विषय की ठीक-ठीक जानकारी नहीं होती।
--: श्री श्री ठाकुर, सत्यानुसरण

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